बाल विकास मे आनुवंशिकता व वातावरण का महत्व | What you want All in 1 post

आनुवंशिकता-व-वातावरण-का-प्रभाव
आनुवंशिकता व वातावरण
heredity and environment

बाल विकास मे आनुवंशिकता व वातावरण के महत्व को समझने से पहले हमे यह समझना होगा की आनुवंशिकता क्या है।

आनुवंशिकता

माता-पिता के द्वारा उनके बच्चों मे शारीरिक गुणों तथा जीन्स द्वारा होने वाले संचरण का अध्ययन करने वाले विज्ञान को आनुवंशिकी कहते है। जीन्स द्वारा होने वाले गुणों के संचरण को ही आनुवंशिकता कहा जाता है।

जब पिता के शुक्राणु माँ के अंडाणु से मिलता है, तो इससे गर्भधारण होता है।गर्भधारण के समय शुक्राणु के 23 क्रोमोजोंस अंडाणु के 23 क्रोमोजोंस से मिलते है और इस तरह से क्रोमोजोंस की कुल संख्या 46 हो जाती है। इसमे 23 जोड़े भी कहा जा सकता है। कोमोजोंस का आकार धागे के समान लंबा होता है और प्रत्येक क्रोमोजोंस मे जीन्स पाए जाते है जिससे आनुवंशिक गुण संचित होते है।

मूल आनुवंशिक सिद्धांत

मानव शरीर कोशिका से बना होता है। और प्रत्येक कोशिका के केंद्र मे क्रोमोजोंस पाए जाते है। प्रत्येक कोशिका मे ये 23 जोड़े अर्थात 46 की संख्या मे होते है। परंतु एक जनन कोशिका मे केवल 23 गुणसूत्र ही पाए जाते है। जब पुरुष के शुक्राणु से निकले 23 गुणसूत्र औरत के अंडाणु के 23 गुणसूत्रों से मिलते है तो गर्भ धारण होता है। और दोनों के मिलने से एक नए जीव का निर्माण होता है जिसमे गुणसूत्रों की संख्या 46 हो जाती है।

इनमे गुणसूत्रों के 22 जोड़ों का आकार स्त्री और पुरुष मे एक समान होता है इन्हेआटोजोमस कहते है , परंतु 23 वा गुणसूत्र लिंग निर्धारक होता है। यह गुणसूत्र का जोड़ा पुरुष मे अलग होता है इसमे से एक का आकार लंबा तथा एक का आकार छोटा होता है।

पिता के लंबे गुणसूत्र को X तथा छोटे को Y गुणसूत्र कहा जाता है। माँ के गुणसूत्र मे केवल x ही होता है। किसी बच्चे के लिंग का निर्धारण पिता के गुणसूत्र से होता है, जब एक पिता का गुणसूत्र माता के गुणसूत्र से मिलता है तो लड़की पैदा होती है, परंतु जब पिता का गुणसूत्र माता के गुणसूत्र से मिलता है तो लड़का पैदा होता है।

गुणसूत्रों मे एक विशेषता होती है जिसे जीन कहा जाता है। इन्ही जीन्स के माध्यम से किसी बच्चे मे उसके पुरखों के गुणों की प्राप्ति होती है। एक गुणसूत्र मे अनेकों जीन्स हो सकते है और प्रत्येक जीन्स से एक विशेष गुण की प्राप्ति होती है।

किसी जीन मे मुख्य रूप से दो जैविक गुण होते है जिन्हे dna व rna कहा जाता है। डी एन ए माता पिता के गुणों को संचरण करता है जबकि rna डीएनए के संदेशों को कैरी करता है।

वंशक्रम की कुछ परिभाषाएं :-

जेम्स ड्रेवर के अनुसार,” माता-पिता की शारीरिक और मानसिक विशेषताओं का संतान मे संचरण होना ही वंशक्रम है। “

बी. एन. झा . के अनुसार,”वंशक्रम व्यक्ति की जन्मजात विशेषताओं का पूर्ण योग है । “

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वातावरण

पर्यावरण या वातावरण वह वस्तु है जो व्यक्ति को चेतन या अचेतन रूप मे चारों ओर से घेरे हुए है।

वातावरण के अंतर्गत वे सभी तत्व सम्मिलित किए जाते है जो व्यक्ति के जीवन, उसके व्यवहार और सामाजिक संबंधों को प्रभावित करते है।

वुडवर्थ के अनुसार,”वातावरण में वे सब बाह्य तत्व या जाते है, जिन्होंने व्यक्ति को जीवन आरंभ करने के समय से प्रभावित किया है। “

वॉटसन के अनुसार,” वातावरण के प्रभाव से शिशु को डॉक्टर, वकील, कलाकार, नेता कुछ भी बनाया जा सकता है, भले शिशु का आनुवंशिकी कुछ भी रहा हो तथा एक समाज के व्यक्ति शारीरिक और मानसिक दृष्टि से असमान होते है। “

बाल विकास मे आनुवंशिकता व वातावरण का महत्व

बालकों मे विकास को आनुवंशिकता व वातावरण का गहरा प्रभाव होता है। किसी भी बालक के व्यक्तिव का निर्धारण मे कुछ हिस्सा आनुवंशिकता तथा कुछ हिस्सा वातावरण से होता है। यह कहा जा सकता है की बाल के व्यवहार का निर्धारण दोनों की अंतक्रिया: का परिणाम होता है।

व्यक्तित्व के व्यवहार के निर्धारण में आनुवंशिकता तथा वातावरण के तुलनात्मक महत्व को दिखाने के लिए के मनोवैज्ञानिकों ने निम्नांकित दो तरह के अध्ययन किया है

(1) जुड़वाँ बच्चों का अध्ययन

(2) पोष्यबच्चों का अध्ययन

(1) जुड़वाँ बच्चों का अध्ययन

जुडवां बच्चे दो प्रकार के होते हैं एकांकी जुड़वा बच्चे और भ्रात्रीय जुड़वाँ बच्चे। एकांकी जुड़वाँ बच्चों कि मानसिकता बिलकुल ही समरूप होती है,क्योंकि ऐसे बच्चे का जन्म माँ के एक अंडाणु के गर्भित होने के फलस्वरूप होता है।कोशिका विभाजन के दौरान एक ही गर्भित अंडाणु किसी कारण से दो स्वतंत्र भागों में बटकर 2 बच्चों को जन्म देता है.ऐसे बच्चे या तो दोनों लड़का या दोनों ही लड़की होते हैं।

भ्रात्रीय जुड़वाँ बच्चों का जन्म इसलिए हो पाता है क्योंकि माँ के दो अंडाणु एक ही साथ पिता कि दो अलग अलग शुक्राणु द्वारा गर्भित हो जाते हैं। स्वाभाविक है ऐसे जुड़वाँ बच्चों की अनुवांशिकता सामान या समरूप नहीं होती है,क्योंकि इसमें 2 अलग अलग गर्भित अंडाणु होते हैं ऐसे बच्चों का यौन कुछ भी हो सकता है अर्थात 1 लड़का तथा एक लड़की या दोनों लड़का या दोनों लड़की।

(अ) एकाँकी जुड़वा बच्चे जिनका पालन पोषण एक ही वातावरण मे हुआ था :- गैशल और थॉमसन ने इस पर अध्ययन किया उन्होंने अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष दिया कि व्यक्तित्व का निर्धारण की समानता अनुवांशिकता की समानता दोनों के आधार पर होता है।

उन्होंने यह अध्ययन 2 एकाँकी जुड़वा बहन के ऊपर किया और लगभग 14 वर्ष तक यह अध्ययन किया गया उन्होंने एक ही वातावरण में उनको रखकर उनके व्यवहार के अध्ययन किया एक बहन का नाम t दूसरी बहन का नाम c  रखा।  जब 14 वर्ष के बाद दोनों  बहनों के व्यवहार को देखा गया और तुलना की गई तो प्रयोगकर्ताओं को  बहुत ही रोचक तथ्य प्राप्त हुए।  इन दोनों बहनों में काफी समानता थी परंतु सूक्ष्म रूप से देखने पर इनमेंअसमानता भी थी।  जैसे टी बहुत ही अधिक चालाक ध्यान मगन तथा किसी कार्य को तेजी से करती थी जबकि सी  थोड़ा आराम से तथा सोच समझकर किसी काम को करती थी। 

उन्होंने इस अध्ययन का निष्कर्ष दिया की व्यक्तित्व का निर्धारण वातावरण की समानता तथा अनुवांशिकता की समानता दोनों के आधार पर होता है।

(ब) एकाँकी जुड़वा बच्चे जिनका पालन पोषण अलग अलग वातावरण मे हुआ है :- यह अध्ययन मोनोवैज्ञानिकों नयूमेन, फ्रीमेन और हॉलजिंगर ने किया । उन्होंने इस अध्ययन के आधार पर निसकर्ष निकाल की व्यक्तिव आनुवंशिकता तथा वातावरण की अंत: क्रिया का परिणाम होता है।

(2) पोष्य बच्चों का अध्ययन

मनोवैज्ञानिकों ने पोष्य  बच्चों का अध्ययन करके वातावरण तथा अनुवांशिकता के तुलनात्मक महत्व का अध्ययन किया है।  इस अध्ययन के द्वारा मनोवैज्ञानिकों ने 2 प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास किया है-

>  क्या उससे बच्चों के व्यवहार में अपने वास्तविक माता-पिता के व्यवहार से अधिक समानता होती है या अपने पोष्य माता पिता के व्यवहार से ?

>   यदि अनुकूल वातावरण में ऐसे बच्चों को रखकर पाला पोसा जाए तो क्या उनमें कुछ खास गुणों में परिवर्तन आता है?

— पहले प्रशं के संबंध मे मनोवैज्ञानिकों बकर्स(1928), स्किल्स (1938) और स्कोडक (1939) ने किया । इन सभी मनोवैज्ञानिकों ने यह निसकर्ष निकाल की बुद्दि के निर्धारण मे वातावरण एवं आनुवंशिकता दोनों का महत्व है न की एक का।

— दूसरे प्रश्न के संदर्भ मे, मनोवैज्ञानिकों ने कुछ अध्ययन करके यह दिखा दिया की पोष्य बच्ची को कुछ अनुकूल वातावरण मिलने पर उसकी बुद्धि के स्तर मे थोड़ी वृद्धि होती है।

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