विश्व मधुमेह दिवस प्रतिवर्ष 14 नवंबर को मनाया जाता है। यह दिवस मधुमेह से उपजे ज़ोखिम के बारे में बढ़ती चिंताओं के प्रतिउत्तर में वर्ष 1991 में अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह संघ (आईडीएफ) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा बनाया गया था। एक सौ साठ से अधिक देशों में विश्व के सबसे बड़े मधुमेह जागरूकता अभियान के साथ विश्व मधुमेह दिवस वर्ष 2006 से संयुक्त राष्ट्र का आधिकारिक दिवस है।
इस वर्ष की थीम ‘एक्सेस टू डायबिटीज एजुकेशन’ है। बता दें, डायबिटीज आज एक गंभीर समस्या बन चुकी है। डॉक्टरी भाषा में बात करें तो डायबिटीज को ‘साइलेंट किलर’ का खिताब मिला है। खराब जीवनशैली ने हर उम्र के लोगों को इसका शिकार बना दिया है। अगर आपको एक बार डायबिटीज हो गई तो जिंदगीभर के लिए यह आपको परेशान कर सकती है। सबसे बड़ी चिंता वाली बात यह है कि लोग इसके प्रति जागरूक नहीं है और लगातार ऐसी लाइफ स्टाइल को फॉलो कर रहे हैं, जो कई बीमारियों को न्योता दे रही हैं। ऐसे में डायबिटीज के मरीजों की संख्या बढ़ रही है।
प्रत्येक वर्ष 14 नवंबर को विश्व मधुमेह दिवस सर फ्रेडरिक बैंटिंग के जन्मदिवस पर मनाया जाता है, जिन्होंने कनाडा के टोरंटो शहर में बेन्ट के साथ मिलकर सन 1921 में इन्सुलिन की खोज की थी।
प्रतीक चिह्न
सन 2007 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस दिवस को अंगीकार करने के बाद इस का प्रतीक चिह्न नीला छल्ला चुना गया है। छल्ला या वृत्त, निरंतरता का प्रतीक है। वृत्त इस बात का प्रतीक है विश्व के सभी लोग इस पर काबू पाने के लिये एकजुट हों। नीला रंग आकाश, सहयोग और व्यापकता का प्रतीक है। इस प्रतीक चिह्न के साथ जो सूत्र वाक्य दिया गया है वह है- मधुमेह के लिए एकजुटता।
मधुमेह के प्रकार
मधुमेह तीन प्रकार का होता है। एक टाइप 1 और दूसरा टाइप 2 और तीसरा गर्भकालीन मधुमेह। टाइप 1 डायबिटीज का प्रमुख लक्षण शरीर में इंसुलिन का बनना बंद हो जाना होता है। जबकि टाइप 2 की स्थिति में शरीर में इंसुलिन जरूरत के हिसाब से नहीं बन पाता। ऐसे में इसका इस्तेमाल ठीक ढंग से नहीं हो पाता। ध्यान रहे डायबिटीज मोटापा, खानपान और खराब लाइफस्टाइल की वजह से हो सकता है। इनके अलावा गर्भकालीन मधुमेह में गर्भावस्था में अस्थायी स्थिति होती है।