बाल विकास क्या है उसकी कुछ परिभाषाएं बताइए ?
बाल विकास
किसी भी बालक की जीवन का प्रारंभ उसके माँ के गर्भ मे गर्भधान करने के साथ ही शुरू हो जाता है। बाल विकास के अंतर्गत किसी भी बच्चे के बड़े होने के साथ उसमे होने वाले सभी प्रकार के परिवर्तन के बारे मे जानकारी रखी जाती है।
बाल विकास से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं –
जेम्स ड्रेवर के अनुसार :-“बाल मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है, जिसमे मानव के जन्म से लेकर परिपक्वता तक का अध्ययन किया जाता है। “
क्रो व क्रो के अनुसार -“बाल मनोविज्ञान वह वैज्ञानिक अध्ययन है, जो व्यक्ति के विकास का अध्ययन गर्भकाल से सुरू होकर किसोरवस्था की प्रारम्भिक अवस्था तक करता है। “
सी. ई स्किनर के अनुसार,”विकास, जीव और उसके वातावरण की अन्तः क्रिया का प्रतिफल है। “
मुनरो के अनुसार,” विकास परिवर्तन श्रंखला की वह अवस्था है जिसमे बच्चा भ्रूण अवस्था से प्रौढ़ अवस्था तक गुजरता है। “
विकास को ‘क्रमिक परिवर्तनों की श्रंखला’ भी कहा जाता है । इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति मे नवीन विशेषताओ का उदय होता है तथा पुरानी विशेषताओ की समाप्ति हो जाती है। प्रौढ़ावस्था मे जाकर जिन गुणों की प्राप्ति एक मनुष्य करता है वो सभी विकास की प्रक्रिया के पूर्ण होने के कारण ही संभव हो पाती है।
एन्डर्सन के अनुसार ,”विकास का अभिप्राय किसी की ऊंचाई मे कुछ इंचों की वृद्धि या उसकी योग्यता मे वृद्धि मात्र नहीं है, आप्ति विकास अनेकानेक सरंचनात्मक एवं प्रकार्यात्मक प्रक्रमों के समन्वय की एक जटिल प्रक्रिया है। “
विकास एक के बाद एक क्रम से होने वाले परिवर्तन है जिसमे सभी मात्रात्मक एवं गुणात्मक प्रकार के परिवर्तन शामिल होते है।
विकास की प्रक्रिया मे होने वाले परिवर्तनों मे कोई न कोई क्रम अवश्य होता है जो परिवर्तन हुआ है वह उसके पहले होने वाले परिवर्तन से अवश्य संबंध रखता है। अर्थतः आगे आने वाले परिवर्तन पूर्व परिवर्तन पर आधारित है। और उन दोनों के बीच कोई न कोई संबंध अवश्य होता है।
मानव विकास का अध्ययन मनोविज्ञान की जिस शाखा के अंतर्गत किया जाता है उसे उसे बाल मनोविज्ञान कहते है।
बाल मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की अपेक्षाकृत नवीन शाखा है, जिसका विकास पिछले पचास वर्षों मे सर्वाधिक हुआ है।
बालक के विकास का प्रथम वैज्ञानिक विवरण 18 वी शताब्दी (1774 ईशवी ) मे पेस्टलोजी ने प्रस्तुत किया । बाल विकास का सर्वप्रथम अध्ययन जॉन लॉक व थॉमस हॉबस ने किया
भारत मे बाल विकास के अध्ययन की शुरुआत लगभग 1930 मे गीजु भाई बदेका के प्रयासों से कोलकाता विश्व विद्यालय मे हुई।
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