केस इतिहास विधि एक ऐसी विधि है जिसका प्रयोग शिक्षा मनोवैज्ञानिक कुसमायोजित बालकों तथा विचलित बच्चों की समस्याओं के अध्ययन मे करते है।
इस विधि द्वारा अपराधी बालकों की समस्याओं का भी विशिष्ठ अध्ययन किया जाता है। इस विधि मे बालकों की समस्याओं का अध्ययन करने के लिए एक केस इतिहास या विवरण तैयार किया जाता है।
केस इतिहास मे बालक या समस्या से पीड़ित व्यक्ति के जीवन का जन्म से लेकर वर्तमान तथा आगे भविष्य मे होने वाली घटना को भी शामिल किया जाता है।
केस विवरण तैयार करते समय निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिये
(क) प्रारम्भिक सूचनाएं – इसके अंतर्गत समस्या बालक का नाम, उम्र, सेक्स, माता पिता की उम्र, शिक्षा, पेशा, सामाजिक स्तर, परिवार मे कितने सदस्य है आदि बातों को जानना होता है।
(ख) गत इतिहास :- गर्भधारण से लेकर वर्तमान समय तक का इतिहास शामिल
जब बालक माँ के गर्भ मे था तो उसकी स्तिथि क्या थी, जन्म लेते समय की अवस्था कैसी थी, क्या जन्म सही प्रकार से हुआ था या कोई दिक्कत आई थी , क्या उसे बचपन मे कोई गंभीर बीमारी हुई थी। इन सभी बातों को जाना जाता है। और आँकड़े इककठे किए जाते है।
(ग) वर्तमान अवस्था :- उसके वर्तमान के बारे मे भी लेखा जोखा तैयार किया जाता है। उसके क्या रूचियाँ है, उसकी उपलब्धियों के बारे मे जानकारी जुटाई जाती है।
तो इन सभी जानकारियों के आधार पर उसका एक केस विवरण तैयार किया जाता है। सभी आंकड़ों को इकठ्ठा करके उनका विश्लेषण करते है और उसके कुसमायोजन या उसके अपराधी होने के कारणों को जानते है।
किसी भी अध्ययन विधि के कुछ गुण या दोष जरूर होते है चलिए इन्हे जानते है।
केस इतिहास विधि के गुण
1. गहन अध्ययन संभव :- क्योंकि हम किसी भी समस्याग्रसित के बारे मे एक अलग विस्तृत जानकारी जुटाते है तो उससे उसका विस्तृत अध्ययन संभव है। जिससे हमे उसके बारे मे गहन जानकारी मिलती है।
2. मानसिक व शारीरिक समस्याओं की जानकारी :- उसके केस अध्ययन के माध्यम से हमे उसके शारीरिक व मानसिक विकास को जान सकते है जिससे उसकी अवस्थाओं पर पड़े प्रभाव का अधिक विश्लेषण कर सकते है।
3. इस विधि के द्वारा हम सीधा ही उसकी समस्याओं तथा उसके संभावित कारणों का पता लगा सकते है। जो की अन्य विधि मे मुस्किल होता है।
दोष
1. अतीत का विश्लेषण मे दोष :- जब हम किसी का केस इतिहास बनाते है तो जो जानकारी हम उसके भूतकाल के बारे मे प्राप्त करते है तो उसकी कुछ बाते उनके परिवार व उसके साथियों के द्वारा छुपा ली जाती है जिससे उसके केस इतिहास के अध्ययन मे दोष उत्पन्न हो जाता है।
2. दी गई जानकारी की सत्यता संभव नहीं :- जो जानकारी पूर्ण विवरण मे दी गई जानकारी की सत्यता की जांच के बारे मे इस विधि मे कोई तरीका उपलब्ध नहीं है तो उसकी वैद्यता पर भी सवाल खड़े होते है।
3. प्रशिक्षितज्ञों की कमी :- इस विधि मे प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक ही उसके अध्ययन का सही रूप से विश्लेषण कर सकते है। जो की सारे समय उपयोगी साबित नहीं होता।
4. अलग अलग द्वारा अध्ययन करने पर एक ही केस का विश्लेषण मनोवैज्ञानिक अलग अलग तरीके से करते है और उनके द्वारा जो परिणाम दिए जाते है वो भी अलग अलग होते है। इसमे आत्मनिसठता अधिक है।
इन सभी परिसीमाओ के बाद भी नैदानिक विधि का उपयोग समस्याग्रस्त बालकों के व्यवहार के अध्ययन मे काफी किया जाता है।