जलियांवाला बाग हत्याकांड भारतीय इतिहास में एक कलंकित घटना है। अमृतसर के जलियांवाला बाग में जब एक भीड़ शांतिपूर्ण तरीके से इकट्ठी हुई थी, तो ब्रिटिश सरकार ने उस पर गोली चलवा दी थी। जिसमें अनेक निर्दोष और निहत्थे लोग मारे गए थे।
अंग्रेजों की गोली से बचने के लिए अनेक लोग उसी बाग में मौजूद एक कुएँ में कूद गए थे। इसके कारण भी अनेक लोग इस कुख्यात घटना के दौरान मारे गए थे। यह घटना भारतीय इतिहास में ‘जलियांवाला बाग हत्याकांड’ के नाम से जानी जाती है।
जलियांवाला बाग हत्याकांड – मुख्य कारण क्या था?
- जब लोग रौलेट एक्ट के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे थे, तो 9 अप्रैल, 1919 को दो राष्ट्रवादी नेताओं सैफुद्दीन किचलु और डॉ. सत्यपाल को ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था। परिणाम स्वरूप भारतीयों का एक बड़ा वर्ग उद्वेलित हो उठा था।
- फिर अगले ही दिन 10 अप्रैल, 1919 को लोग सत्याग्रहियों पर गोली चलाने तथा राष्ट्रवादी नेताओं को जबरन पंजाब से बाहर भेजने का विरोध कर रहे थे। अंततः यह विरोध हिंसक हो गया और इस हिंसा के दौरान कुछ अंग्रेज भी मारे गए थे।
रॉलेट एक्ट 1919:
- प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान भारत की ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी आपातकालीन शक्तियों की एक शृंखला बनाई जिसका उद्देश्य विध्वंसक गतिविधियों का मुकाबला करना था।
- इस संदर्भ में सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली राजद्रोह समिति की सिफारिशों पर यह अधिनियम पारित किया गया था।
- इस अधिनियम ने सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को दबाने के लिये अधिकार प्रदान किये और दो साल तक बिना किसी मुकदमे के राजनीतिक कैदियों को हिरासत में रखने की अनुमति दी।
जलियांवाला बाग हत्याकांड किस प्रकार हुआ
- उपद्रव को शांत करने के लिए क्षेत्र में मार्शल कानून लागू किया गया और स्थिति से निपटने की जिम्मेदारी एक ब्रिटिश सैन्य अधिकारी जनरल डायर को सौंपी गई। डायर ने 13 अप्रैल, 1919 को एक घोषणा जारी कर कहा कि लोग बिना पास के शहर बाहर न छोड़ें तथा तीन से अधिक लोग एक साथ एकत्रित न हों।
- 13 अप्रैल को वैसाखी के दिन डायर की घोषणा से अनजान लोगों का एक समूह वैसाखी मनाने के लिए अमृतसर के जलियांवाला बाग में एकत्रित हुआ था। इसी स्थल पर कुछ स्थानीय नेताओं ने भी विरोध सभा का आयोजन किया था।
- इस दौरान विरोध प्रदर्शन और त्यौहार का आयोजन शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा था। इस अवसर पर रौलेट अधिनियम की समाप्ति संबंधी और 10 अप्रैल की गोलीबारी की निंदा संबंधी दो प्रस्ताव पारित किए गए।
- लेकिन जनरल डायर ने इस सभा को सरकारी आदेश की अवहेलना मानकर बिना किसी पूर्व चेतावनी के वहाँ जमा लोगों पर गोलियाँ चलवा दीं तथा वहाँ से निकासी के सभी मार्ग बंद कर दिए।
- ब्रिटिश सरकार द्वारा किए गए इस निर्मम दमन के कारण लगभग 1000 लोग मारे गये। इस दौरान मरने वालों में युवा, महिलाएँ, वृद्ध, बच्चे सभी उम्र के लोग शामिल थे। इस निर्लज्ज व कुख्यात जलियांवाला बाग हत्याकांड से पूरा देश सन्न रह गया था। यह एक हिंसक जानवर द्वारा अपने शिकार के प्रति की जाने वाली क्रूरता से भी अधिक दर्दनाक कृत्य था। सम्पूर्ण देश में इस बर्बर हत्याकांड की निंदा की गई थी।
- जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी ‘नाइटहुड’ की उपाधि का त्याग कर दिया था। इसके अलावा, वायसराय की कार्यकारिणी के भारतीय सदस्य शंकरराम नागर ने कार्यकारिणी से इस्तीफा दे दिया था।
- गाँधी जी ने 18 अप्रैल, 1919 को सत्याग्रह को समाप्त करने की घोषणा कर दी थी क्योंकि गाँधी जी का मत था कि सत्याग्रह में हिंसा का कोई स्थान नहीं होता है।
- जनरल डायर को अंग्रेजी हुकूमत ने प्रशस्ति पत्र प्रदान किया।
- घटना की जांच करने के लिए तत्कालीन भारत सचिव एडविन मांटेग्यू ने विलियम हंटर की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया था। इसलिए इसको प्रचलित रूप में ‘हंटर कमीशन’ के नाम से जाना जाता है।
- हंटर आयोग ने ब्रिटिश सरकार को अपनी जो रिपोर्ट सौंपी, उसमें डायर के कृत्य की निंदा की गई थी
- इस हत्याकांड की जांच करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भी अपने स्तर पर एक गैर-सरकारी समिति गठित की थी। इसमें गांधी जी ,मोतीलाल नेहरू, एम. आर. जयकर, सी.आर. दास, अब्बास तैयबजी शामिल थे। कांग्रेस ने डायर के कृत्य को अमानवीय कहा और पंजाब में मार्शल कानून लगाने को तर्कसंगत नहीं माना।
- इस घटना मे सरदार उधम सिंह बच गए जिन्होंने बाद मे जनरल डायर के हेड माइकल ओ डायर को 13 मार्च 1940 इंग्लैंड मे गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके चलते उन्हे पेन्टलविले जेल मे 31 जुलाई 1940 को फासी की सजा दी गई ।