राष्ट्रीय पक्षी मोर
26 जनवरी 1963 को भारत सरकार ने मोर को राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया।
पंखो को फैलाए हुए मोर को कार्तिकेय (मुरुगन) का वाहन माना जाता है।
मोर को पक्षियों का राजा कहा जाता है।
‘फैसियानिडाई’ परिवार के सदस्य मोर का वैज्ञानिक नाम ‘पावो क्रिस्टेटस’ है।
संस्कृत भाषा में यह मयूर के नाम से जाना जाता है।
प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के राज्य में जो सिक्के चलते थे, उनके एक तरफ मोर बना होता था।
एक मोर औसतन 20 साल जिंदा रहते हैं।
‘भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972’ के तहत सुरक्षा प्रदान की गई है।
मोर को मारने पर 7 साल की सजा का प्रावधान है।
राष्ट्रीय पशु बाघ
‘रॉयल बंगाल टाइगर’ को भारत का राष्ट्रीय पशु माना जाता है।
इसका वैज्ञानिक नाम ‘पैंथेरा टिगरिस -लिन्नायस’ है.
बाघ को 1973 में भारत का राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया था.
भारत में बाघों की घटती संख्या को देखते हुए वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया गया था।
वर्ष 2006 में देश में टाइगर्स की कुल संख्या 1411 थी जो कि 2018 में बढ़कर 2967 हो गयी थी.
बाघ भारत के उत्तर-पश्चिम भाग को छोड़कर बाकी सारे देश में पाया जाता है
हर बाघ के शरीर पर 100 से भी ज्यादा धारीदार पट्टियाँ पायी जाती हैं, लेकिन किन्हीं भी दो बाघों की धारीदार पट्टियाँ एक जैसी नहीं होती हैं
भारत व बांग्लादेश के सुंदरबन में पाये जाने वाले बाघ मैंग्रोव वनों में रहने वाले विश्व के एकमात्र बाघ हैं
सफ़ेद बाघ, बाघों की कोई अलग प्रजाति नहीं है बल्कि सामान्य बाघ ही हैं लेकिन उनकी त्वचा पर ‘पिगमेंटरी कोशिकाओं’ के कम पाये जाने के कारण त्वचा का रंग सफ़ेद हो जाता है .
नवजात बाघ अपने जन्म से एक सप्ताह तक कुछ भी नहीं देख पाता है.
राष्ट्रीय चिन्ह
अशोक चिह्न भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है।
राष्ट्र के प्रतीक में जिसे 26 जनवरी 1950 में भारत सरकार द्वारा अपनाया गया था
इसको सारनाथ में मिली अशोक लाट से लिया गया है।
मूल रूप इसमें चार शेर हैं जो चारों दिशाओं की ओर मुंह किए खड़े हैं।
केवल तीन सिंह दिखाई देते हैं और चौथा छिपा हुआ है, दिखाई नहीं देता है।
इसके नीचे एक गोल आधार है जिस पर एक हाथी के एक दौड़ता घोड़ा, एक सांड़ और एक सिंह बने हैं।
हर पशु के बीच में एक धर्म चक्र बना हुआ है।
चक्र केंद्र में दिखाई देता है, सांड दाहिनी ओर और घोड़ा बायीं ओर और अन्य चक्र की बाहरी रेखा बिल्कुल दाहिने और बाई छोर पर।
आधार का पदम छोड़ दिया गया है।
फलक के नीचे मुण्डकोपनिषद का सूत्र ‘सत्यमेव जयते’ देवनागरी लिपि में अंकित है, जिसका अर्थ है- ‘सत्य की ही विजय होती है’।