प्राकृतिक रूपरेखा
हरियाणा राज्य भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में 27°39′ से 30°55′ उत्तर अक्षांश और 74°28′ से 77°36′ पूर्व रेखांश के बीच स्थित है। इसकी पूर्वी सीमा पर यमुना नदी बहती है, जो इसे उत्तर प्रदेश से जोड़ती है। हरियाणा के उत्तर में शिवालिक पर्वतमाला और हिमाचल प्रदेश हैं, जबकि पश्चिम में पंजाब और दक्षिण में अरावली की पहाड़ियों के साथ राजस्थान का रेगिस्तान है। हरियाणा का कुल क्षेत्रफल 44,212 वर्ग किमी है, और 2011 की जनगणना के अनुसार इसकी जनसंख्या 25,351,462 है। केरल, गोवा, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, मेघालय और मणिपुर को छोड़कर, हरियाणा का क्षेत्रफल भारत के अन्य राज्यों से बड़ा है। हालांकि, इसकी जनसंख्या गोवा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, त्रिपुरा और मेघालय से अधिक है।
हरियाणा की भौगोलिक स्थिति और थार रेगिस्तान में ऊपरी वायु उच्च ताप के निकटता के कारण प्रदेश में वर्षा की मात्रा कम होती है। यहाँ का मैदानी भाग समुद्र तल से 700 से 900 फीट ऊँचा है। हरियाणा को चार प्राकृतिक भागों में विभाजित किया जा सकता है:
- शिवालिक का पहाड़ी क्षेत्र: शिवालिक पर्वत श्रृंखलाएँ हरियाणा के उत्तर-पूर्वी भाग में हैं, जिनकी ऊँचाई 900 से 2300 मीटर तक होती है। यहाँ से घग्घर, टांगरी, मारकंडा, और सरस्वती नदियाँ निकलती हैं। इस क्षेत्र में ठंड और अधिक वर्षा होती है, जिससे यहाँ के वनों से लकड़ी का उपयोग होता है।
- मैदानी क्षेत्र: यह हरियाणा का सबसे बड़ा भाग है, जो उत्तर से दक्षिण तक फैला है। यहाँ गर्मियों में उच्च तापमान और सर्दियों में ठंड होती है। यह क्षेत्र कृषि के लिए उपयुक्त है, जहाँ शीशम, पीपल, बड़, आम, नीम, और जामुन के वृक्ष पाए जाते हैं। यहाँ वीवीपुर और नजफगढ़ की प्रसिद्ध झीलें भी स्थित हैं।
- रेतीला क्षेत्र: हरियाणा का पश्चिमी भाग, जो राजस्थान से सटा हुआ है, रेतीला है। यहाँ रेत के छोटे टीले पाए जाते हैं और गर्म हवाएँ चलती हैं। वर्षा कम होने के कारण यहाँ कीकर, कैर, और थोर जैसे वृक्ष पाए जाते हैं, जो जलाने के काम आते हैं। महेन्द्रगढ़, भिवानी, सिरसा, और हिसार जिले इस क्षेत्र में आते हैं।
- अरावली की पहाड़ियों का शुष्क मैदानी भूखण्ड: अरावली पहाड़ियाँ हरियाणा के दक्षिण में स्थित हैं। यहाँ वर्षा कम होती है, और यह क्षेत्र ऊँचा-नीचा तथा कटा-फटा है। चूना और स्लेट का पत्थर यहाँ पाया जाता है।
जलवायु
हरियाणा की जलवायु उत्तर भारत के अन्य राज्यों के समान है, जिसमें मुख्यतः चार मौसम होते हैं: गर्मी, बारिश, सर्दी, और वसंत। हरियाणा की जलवायु को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से विस्तार से समझा जा सकता है:
1. गर्मी
गर्मी का मौसम आमतौर पर अप्रैल से जून तक होता है। इस दौरान, प्रदेश में तापमान 40°C से 50°C के बीच पहुंच सकता है। मई-जून में, गर्म हवाएँ चलती हैं, जो अधिक तापमान को महसूस कराती हैं। इस मौसम में कुछ क्षेत्रों में लू चलने की संभावना भी रहती है, जिससे लोगों को अत्यधिक गर्मी का सामना करना पड़ता है।
2. मानसून
मानसून का मौसम जून से सितंबर तक होता है, जब दक्षिण-पश्चिमी मानसून हरियाणा पर बारिश लाता है। इस अवधि में, वर्षा की मात्रा में वृद्धि होती है, जो कृषि के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। हरियाणा में औसतन 40 से 70 सेमी वर्षा होती है, लेकिन यह क्षेत्र के अनुसार भिन्न हो सकती है। शिवालिक क्षेत्र में अधिक वर्षा होती है, जबकि पश्चिमी हरियाणा में कम। मानसून के दौरान तापमान में थोड़ी कमी आती है, जिससे वातावरण में नमी बढ़ जाती है।
3. सर्दी
सर्दी का मौसम दिसंबर से फरवरी तक चलता है। इस दौरान, तापमान 0°C तक गिर सकता है, खासकर जनवरी में। सर्दियों में अक्सर धुंध और कोहरा देखने को मिलता है, जो विशेष रूप से सुबह के समय अधिक होता है। इस मौसम में ठंडी हवाएँ चलती हैं, और दिन का तापमान 10°C से 20°C के बीच रहता है। सर्दियों में, प्रदेश में अधिकतर कृषि गतिविधियाँ होती हैं, जैसे रबी फसलों की बुवाई और कटाई।
4. वसंत
वसंत का मौसम मार्च से अप्रैल तक होता है। इस दौरान, तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि होती है और मौसम सुहावना हो जाता है। यह समय खेतों में फसल की कटाई और नई फसल की बुवाई का होता है। वसंत में, दिन और रात का तापमान सामान्यतः संतुलित रहता है, जिससे यह किसानों के लिए काफी लाभकारी होता है।
वर्षा
हरियाणा में वर्षा की विशेषताएँ और पैटर्न कृषि, जल संसाधनों, और स्थानीय पारिस्थितिकी पर गहरा प्रभाव डालते हैं। यहाँ वर्षा के विभिन्न पहलुओं का विस्तार से वर्णन किया गया है:
1. वर्षा के मौसम
हरियाणा में वर्षा मुख्यतः दो मौसमों में होती है:
- मानसून (जून से सितंबर): यह वर्षा का प्रमुख मौसम है, जिसमें दक्षिण-पश्चिमी मानसून प्रदेश में दस्तक देता है। इस अवधि में वर्षा का स्तर अन्य मौसमों की तुलना में बहुत अधिक होता है। मानसून के दौरान, हरियाणा में औसत वर्षा 40 से 70 सेमी के बीच होती है, लेकिन यह क्षेत्र के अनुसार भिन्न होती है।
- जाड़े की ऋतु (दिसंबर से फरवरी): इस दौरान, वर्षा की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है। हालांकि, कुछ स्थानों पर हल्की वर्षा होती है, जो रबी फसलों के लिए फायदेमंद होती है।
2. वर्षा का वितरण
हरियाणा में वर्षा का वितरण असमान है, जो भौगोलिक स्थिति और स्थानीय जलवायु पर निर्भर करता है:
- उत्तर-पूर्वी क्षेत्र: यहाँ, जैसे अम्बाला, कुरुक्षेत्र, और यमुनानगर, अधिकतम वर्षा होती है। इस क्षेत्र में वर्षा की मात्रा 60 से 80 सेमी तक पहुँच सकती है, जो कृषि के लिए बहुत लाभकारी होती है।
- दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र: सिरसा, हिसार, भिवानी, और फरीदाबाद जैसे जिलों में वर्षा की मात्रा कम होती है, जो 25 से 30 सेमी तक सीमित हो सकती है। यहाँ की शुष्क जलवायु फसल उत्पादन को प्रभावित करती है।
3. वर्षा की अनिश्चितता
हरियाणा में वर्षा की मात्रा और पैटर्न अनियमित हो सकते हैं, जो विभिन्न कारणों से होते हैं:
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा के पैटर्न में परिवर्तन आ रहा है, जिससे सूखा और बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- मानसून की कमजोरी: कभी-कभी, मानसून की बारिश कम होती है या समय पर नहीं आती, जिससे किसानों को फसल के लिए आवश्यक जल संसाधनों की कमी होती है।
4. कृषि पर प्रभाव
वर्षा का कृषि उत्पादन पर गहरा प्रभाव पड़ता है:
- खरीफ फसलें: मानसून की वर्षा खरीफ फसलों के लिए आवश्यक होती है, जैसे धान, कपास, और सोयाबीन। यदि वर्षा समय पर नहीं होती है, तो इन फसलों की उपज प्रभावित होती है।
- रबी फसलें: जाड़े की ऋतु में होने वाली वर्षा रबी फसलों, जैसे गेहूँ, सरसों, और चना, के लिए महत्वपूर्ण होती है। हालांकि, इस अवधि में वर्षा की मात्रा कम होती है।
5. जल संरक्षण
कम वर्षा वाले क्षेत्रों में जल संरक्षण के उपाय आवश्यक हैं। जल संचयन, वर्षा जल संचयन प्रणाली, और कुओं का उपयोग फसलों के लिए जल उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
6. वर्षा के अन्य पहलू
- पारिस्थितिकी: वर्षा न केवल कृषि, बल्कि स्थानीय पारिस्थितिकी पर भी प्रभाव डालती है। यह जलाशयों, नदियों, और भूजल स्तर को बनाए रखने में मदद करती है।
- स्थानीय जनजीवन: वर्षा का स्थानीय जनजीवन पर भी गहरा प्रभाव होता है। अधिक वर्षा से स्वास्थ्य, परिवहन, और दैनिक गतिविधियाँ प्रभावित हो सकती हैं।
हरियाणा की वर्षा की विशेषताएँ न केवल कृषि उत्पादन को प्रभावित करती हैं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था और समाज पर भी गहरा असर डालती हैं।
मिट्टी
हरियाणा की मिट्टी कृषि की उपज, जलवायु, और स्थानीय भूगोल पर निर्भर करती है। यहाँ की मिट्टी की विशेषताएँ, प्रकार, और कृषि पर प्रभाव के विभिन्न पहलुओं का विस्तार से वर्णन किया गया है:
1. मिट्टी के प्रकार
हरियाणा में मुख्यतः तीन प्रकार की मिट्टी पाई जाती हैं:
- कृषि योग्य मिट्टी (अल्यूवियल मिट्टी): यह मिट्टी यमुना, घग्घर, और सरस्वती नदियों द्वारा लाए गए नदियों के अवसाद से बनी होती है। यह मिट्टी पीले भूरे रंग की होती है और अत्यधिक उपजाऊ होती है। यह मुख्यतः मैदानी क्षेत्रों में पाई जाती है और गेहूँ, चावल, और अन्य फसलों के लिए उपयुक्त होती है।
- रेतीली मिट्टी: हरियाणा के पश्चिमी भाग, जैसे सिरसा और भिवानी, में रेतीली मिट्टी का प्रचलन है। यह मिट्टी हल्की और अधिकतर शुष्क होती है, जिसमें जलधारण क्षमता कम होती है। यहाँ की मिट्टी का रंग हल्का भूरा होता है, और यह मुख्यतः कीकर और थोर जैसे पेड़-पौधों के लिए उपयुक्त है।
- पहाड़ी मिट्टी: शिवालिक पहाड़ियों में पाई जाने वाली यह मिट्टी पत्थरीली होती है और सामान्यतः कम उपजाऊ होती है। इस क्षेत्र में चूना और स्लेट का पत्थर भी मिलता है, और यहां की मिट्टी में अधिक ठंड और अधिक वर्षा होती है।
2. मिट्टी की विशेषताएँ
हरियाणा की मिट्टी की विशेषताएँ इसके कृषि उपयोग को प्रभावित करती हैं:
- उपजाऊ मिट्टी: अल्यूवियल मिट्टी की उच्च उपजाऊ क्षमता इसे कृषि के लिए उपयुक्त बनाती है। यह मिट्टी फसलों की वृद्धि के लिए आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर होती है।
- जलधारण क्षमता: रेतीली मिट्टी की जलधारण क्षमता कम होती है, जिससे इसे सिंचाई की आवश्यकता अधिक होती है। इस प्रकार की मिट्टी में फसलें केवल अच्छी सिंचाई के माध्यम से ही अच्छी हो सकती हैं।
- मिट्टी का pH स्तर: हरियाणा की मिट्टी में विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएँ होती हैं। कुछ क्षेत्र में मिट्टी में नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी होती है, जिससे फसल उत्पादन प्रभावित होता है।
3. मिट्टी का कृषि पर प्रभाव
हरियाणा की मिट्टी का कृषि उत्पादन पर गहरा प्रभाव पड़ता है:
- फसल का चयन: मिट्टी की विशेषताएँ यह निर्धारित करती हैं कि कौन सी फसलें किस क्षेत्र में बेहतर उगाई जा सकती हैं। उदाहरण के लिए, अल्यूवियल मिट्टी में गेहूँ और चावल की खेती अधिक होती है, जबकि रेतीली मिट्टी में कम उपज वाली फसलों का उत्पादन होता है।
- उर्वरक की आवश्यकता: मिट्टी की गुणवत्ता और उसकी विशेषताओं के अनुसार उर्वरकों का प्रयोग आवश्यक होता है। उच्च उपजाऊ मिट्टी में कम उर्वरक की आवश्यकता होती है, जबकि रेतीली और पत्थरीली मिट्टी में उर्वरक का अधिक प्रयोग किया जाता है।
4. मिट्टी का संरक्षण
मिट्टी का संरक्षण हरियाणा में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। अव्यवस्थित कृषि और जलवायु परिवर्तन के कारण मिट्टी का कटाव और बर्बादी हो रही है। इसके संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं:
- जल संचयन: वर्षा के पानी को संचित करने की तकनीकें, जैसे कि तालाब और जलाशय बनाना, मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद कर सकती हैं।
- सुखदायक फसलें: मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए विभिन्न फसलों का चक्र करना आवश्यक है, जिससे मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन बना रहे।
- वृक्षारोपण: वृक्षों का रोपण मिट्टी को स्थिर करने में मदद करता है और मिट्टी के कटाव को कम करता है।
5. मिट्टी की स्थिति
हरियाणा के विभिन्न जिलों में मिट्टी की स्थिति भिन्न होती है:
- रोहतक और झज्जर: ये क्षेत्र चिकनी और उपजाऊ मिट्टी के लिए जाने जाते हैं, जो गेहूँ और सरसों जैसी फसलों के लिए आदर्श होती हैं।
- सिरसा और भिवानी: इन जिलों में रेतीली मिट्टी पाई जाती है, जो कम उपजाऊ होती है और सिंचाई की आवश्यकता होती है।
- अम्बाला और यमुनानगर: यहाँ अल्यूवियल मिट्टी की उपस्थिति के कारण वर्षा के बाद फसलों की वृद्धि में तेजी आती है।
प्रमुख नदियाँ
हरियाणा की नदियाँ न केवल प्रदेश की भौगोलिक विशेषताओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, बल्कि ये कृषि, जल संसाधनों, और पारिस्थितिकी में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यहाँ हरियाणा की प्रमुख नदियों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया है:
1. यमुना नदी
- स्थान: यमुना नदी हरियाणा के पूर्वी सीमा पर बहती है और उत्तर प्रदेश के साथ राज्य की सीमा बनाती है।
- महत्व: यह नदी सिंचाई, जल आपूर्ति, और कृषि के लिए महत्वपूर्ण है। यमुना नदी से कई नहरें निकाली गई हैं, जो किसानों के लिए जल स्रोत प्रदान करती हैं।
- विशेषताएँ: यमुना नदी का जल प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, जिससे इसकी पारिस्थितिकी और स्थानीय जन जीवन प्रभावित हो रहा है।
2. घग्घर नदी
- स्थान: घग्घर नदी हरियाणा के पश्चिमी भाग में बहती है और राजस्थान में भी विस्तारित होती है।
- महत्व: यह नदी कई स्थानों पर सूख जाती है, लेकिन वर्षा के मौसम में इसका जल स्तर बढ़ जाता है। इसे स्थानीय लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण जल स्रोत माना जाता है।
- विशेषताएँ: घग्घर नदी के किनारे बसे गाँवों में कृषि के लिए जल का प्रमुख स्रोत है, लेकिन इसकी जलधारा में अस्थिरता का सामना करना पड़ता है।
3. सरस्वती नदी
- स्थान: यह नदी मुख्य रूप से हरियाणा के दक्षिणी भाग में बहती है।
- महत्व: इसे एक पौराणिक नदी माना जाता है, और यह क्षेत्र की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है।
- विशेषताएँ: सरस्वती नदी का जल स्तर वर्षा के मौसम में बढ़ता है, लेकिन अन्य समय में यह सूखी रहती है। इसका जल मुख्यतः भूजल के रूप में उपलब्ध होता है।
4. दोहन नदी
- स्थान: यह नदी हरियाणा के दक्षिणी हिस्से में बहती है।
- महत्व: दोहन नदी का जल स्थानीय सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है, लेकिन यह मुख्यतः वर्षा ऋतु में बहती है।
- विशेषताएँ: इसकी जलधारा सीमित होती है, और यह कई स्थानों पर सूख जाती है, जो कृषि पर प्रभाव डालती है।
5. टांगरी नदी
- स्थान: यह नदी हरियाणा के दक्षिण-पश्चिमी भाग में बहती है।
- महत्व: टांगरी नदी का जल स्थानीय जलस्रोतों के लिए महत्वपूर्ण है और यह मुख्यतः वर्षा के समय में बहती है।
- विशेषताएँ: यह नदी भी कई बार सूख जाती है, जिससे किसानों को सिंचाई में कठिनाई होती है।
6. कृष्णावती नदी
- स्थान: यह नदी हरियाणा के कुछ हिस्सों में बहती है और राजस्थान की ओर जाती है।
- महत्व: यह नदी बारिश के मौसम में जल का महत्वपूर्ण स्रोत बन जाती है, लेकिन अन्य समय में इसका प्रवाह सीमित रहता है।
- विशेषताएँ: इसका जल उपयोग आमतौर पर सिंचाई के लिए किया जाता है।
7. साहिबी नदी
- स्थान: यह नदी अरावली की पहाड़ियों से निकलती है और हरियाणा के दक्षिणी हिस्से में बहती है।
- महत्व: साहिबी नदी का जल स्थानीय स्तर पर कृषि के लिए महत्वपूर्ण है।
- विशेषताएँ: यह नदी अक्सर सूखी रहती है, लेकिन वर्षा के मौसम में इसका जल स्तर बढ़ता है।
8. मारकंडा नदी
- स्थान: यह नदी शिवालिक पर्वत से निकलती है और हरियाणा के विभिन्न हिस्सों में बहती है।
- महत्व: मारकंडा नदी का जल स्थानीय सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है और यह अन्य नदियों से मिलती है।
- विशेषताएँ: इसका जल वर्षा के मौसम में अधिक होता है, लेकिन सूखे के समय में इसकी धारा में कमी आ जाती है।
प्रमुख नहरें
हरियाणा की नहरें राज्य के कृषि विकास और जल प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यहाँ की नदियों से निकाली गई नहरें सिंचाई, घरेलू जल आपूर्ति और औद्योगिक उपयोग के लिए जल प्रदान करती हैं। हरियाणा की प्रमुख नहरों का विस्तार से विवरण निम्नलिखित है:
1. पश्चिमी यमुना नहर
- स्थान: यह नहर यमुना नदी से निकलती है, जो हरियाणा के पश्चिमी भाग में बहती है।
- महत्व: यह नहर हरियाणा की सबसे पुरानी और महत्वपूर्ण नहरों में से एक है। इसकी मदद से करनाल, पानीपत, सोनीपत, जींद, और रोहतक जिलों में सिंचाई की जाती है।
- विशेषताएँ: पश्चिमी यमुना नहर का जल स्तर सामान्यतः स्थिर होता है, जिससे किसानों को नियमित जल आपूर्ति मिलती है। इसकी शाखाएँ कई क्षेत्रों में फैलती हैं और विभिन्न फसलों की सिंचाई में सहायक होती हैं।
2. पूर्वी यमुना नहर
- स्थान: यह नहर भी यमुना नदी से निकाली जाती है और हरियाणा के पूर्वी हिस्से में बहती है।
- महत्व: यह नहर विशेष रूप से गुरुग्राम और फरीदाबाद जिलों में सिंचाई के लिए उपयोग की जाती है।
- विशेषताएँ: पूर्वी यमुना नहर के जल का उपयोग कृषि के साथ-साथ घरेलू उपयोग के लिए भी किया जाता है।
3. भाखड़ा नहर
- स्थान: यह नहर सतलुज नदी से निकाली गई है और नंगल क्षेत्र के पास स्थित है।
- महत्व: भाखड़ा नहर हरियाणा के सिरसा, रोहतक, और हिसार जिलों में सिंचाई का मुख्य स्रोत है। यह नहर प्रदेश के खाद्य उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
- विशेषताएँ: भाखड़ा नहर का जल विभिन्न फसलों के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध कराता है और इसके माध्यम से कृषि की उत्पादकता बढ़ाने में सहायता मिलती है।
4. जवाहरलाल नहर
- स्थान: यह नहर भाखड़ा नहर से निकाली गई है और यह एक छोटी नहर है।
- महत्व: जवाहरलाल नहर का उपयोग महेन्द्रगढ़ जिले में सिंचाई के लिए किया जाता है।
- विशेषताएँ: यह नहर स्थानीय जल संसाधनों को समृद्ध करने में मदद करती है और क्षेत्र की कृषि गतिविधियों को बढ़ावा देती है।
5. भिवानी नहर
- स्थान: यह नहर भी भाखड़ा नहर से निकाली गई है।
- महत्व: भिवानी जिले में सिंचाई कार्य के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। यह नहर क्षेत्र के जल संतुलन को बनाए रखने में मदद करती है।
- विशेषताएँ: भिवानी नहर का जल स्तर फसलों की जरूरतों के अनुसार नियंत्रित किया जाता है, जिससे कृषि उत्पादकता में वृद्धि होती है।
प्रमुख झीलें
हरियाणा की झीलें न केवल प्रदेश के प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ाती हैं, बल्कि ये स्थानीय पारिस्थितिकी, कृषि और पर्यटन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यहाँ हरियाणा की प्रमुख झीलों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया है:
1. बड़खल झील
- स्थान: बड़खल झील फरीदाबाद जिले के पश्चिमी भाग में स्थित है।
- विशेषताएँ: यह झील एक कृत्रिम जलाशय है, जिसे 1947 में सिंचाई परियोजना के तहत बनाया गया था। इसका उद्देश्य भूमि के कटाव को रोकना था।
- महत्व: बड़खल झील में विभिन्न प्रकार के जल पक्षियों की उपस्थिति होती है, जिससे यह एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल बन गई है। यहाँ पर नाव चलाने, पिकनिक मनाने और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए लोग आते हैं।
2. दमदमा झील
- स्थान: यह झील गुरुग्राम जिले में स्थित है।
- विशेषताएँ: दमदमा झील एक कृत्रिम झील है जो हरियाणा की सबसे बड़ी झीलों में से एक मानी जाती है। यह झील पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय स्थल है, जहाँ विभिन्न जल खेल और साहसिक गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं।
- महत्व: यहाँ के शांत वातावरण और प्राकृतिक सौंदर्य के कारण इसे पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए जाना जाता है। झील के किनारे कई रिसॉर्ट और कैम्पिंग सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
3. खलीलपुर झील
- स्थान: यह झील भी गुरुग्राम जिले में स्थित है।
- विशेषताएँ: खलीलपुर झील पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में मदद करती है और यहाँ विभिन्न प्रकार के जलीय जीवों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- महत्व: यह झील स्थानीय समुदाय के लिए जल स्रोत का काम करती है और विभिन्न वन्यजीवों के लिए आवास प्रदान करती है।
4. सुलतानपुर झील
- स्थान: यह झील फरीदाबाद के नजदीक स्थित है।
- विशेषताएँ: सुलतानपुर झील एक पक्षी अभयारण्य है, जहाँ विभिन्न प्रवासी पक्षी सर्दियों के मौसम में आते हैं। यह स्थान पक्षीwatching के लिए लोकप्रिय है।
- महत्व: यहाँ आने वाले पर्यटकों को पक्षियों की विविधता का आनंद लेने का अवसर मिलता है। यह झील प्राकृतिक अनुसंधान और संरक्षण का एक महत्वपूर्ण केंद्र भी है।
5. कोटला झील
- स्थान: यह झील भी गुरुग्राम जिले में स्थित है।
- विशेषताएँ: कोटला झील के चारों ओर हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य है, जो इसे एक शांतिपूर्ण स्थान बनाता है।
- महत्व: यह झील स्थानीय लोगों के लिए एक मनोरंजक स्थल है और यहाँ पिकनिक मनाने के लिए कई परिवार आते हैं।