कंपनी का एकाधिकार
- शुरूवात में जब 1600 में अंग्रेज़ भारत में व्यापार करने के लिए आए और उन्होंने भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी स्थापित की।
- बक्सर की लड़ाई (वर्ष 1764) के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी (राजस्व एकत्र करने का अधिकार) मिला तथा धीरे-धीरे यह भारतीय मामलों में हस्तक्षेप करने लगी।
- वर्ष 1765 में एक शासकीय निकाय में बदल गई थी।
- ब्रिटिश सरकार के एकाधिकार दिए जाने, यानी सिर्फ़ ईस्ट इंडिया कम्पनी ही इन जगहों पर व्यापार करेगी, इसके बदले ईस्ट इंडिया कम्पनी ब्रिटिश सरकार को हर साल बहुत सारे पैसे दिया करती थी।
कंपनी का खराब समय
- 1768 के बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थिति बहुत ज्यादा ख़राब होती चली गयी, और धीरे-धीरे कम्पनी ब्रिटिश सरकार को पैसे देने में असमर्थ होने लगी, और एक समय ऐसा भी आ गया की कम्पनी ने ब्रिटिश सरकार से ही पैसे ऋण के रूप में माँग लिए।
रेगुलेटिंग एक्ट 1773 लागू होने के बाद बदलाव
- इसके द्वारा पहली बार कम्पनी के प्रशासनिक और राजनीतिक कार्यों को मान्यता मिली और इसके द्वारा भारत में केन्द्रीय प्रशासन की नींव रखी गयी।
- इस अधिनियम के माध्यम से पहली बार ब्रिटिश कैबिनेट को भारतीय मामलों पर नियंत्रण रखने का अधिकार दिया गया था।
- गवर्नर-जनरल का परिचय: इसने बंगाल के गवर्नर के पद को बदलकर “बंगाल के गवर्नर-जनरल” कर दिया।
- बंगाल में प्रशासन गवर्नर-जनरल और 4 सदस्यों वाली एक परिषद द्वारा चलाया जाना था।
- वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का पहला गवर्नर-जनरल बनाया गया था।
- बॉम्बे और मद्रास के गवर्नर अब बंगाल के गवर्नर-जनरल के अधीन कार्य करते थे।
- सुप्रीम कोर्ट की स्थापना: माध्यम से 1774 में कलकत्ता के फ़ोर्ट विल्यम नामक स्थान में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गयी, जो ईस्ट इंडिया कम्पनी और बाक़ी अंग्रेजो के लिए था,
- इसमें एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश शामिल थे।
- इसके पहले मुख्य न्यायाधीश “सर एलिजा एम्पी” बने।
- न्यायिक विधियां इंग्लैंड के अनुसार ही थीं।
एक्ट ऑफ सेटलमेंट-1781
- इस रेगुलेटिंग एक्ट में वर्ष 1781 में कुछ संशोधन किए गए जोकि निम्नवत है –
- इस संशोधित एक्ट को “एक्ट ऑफ सेटलमेंट” का नाम दिया गया।
- कलकत्ता स्थित उच्चतम न्यायालय के कार्यक्षेत्र को परिभाषित कर दिया गया।
- किसी भी स्थिति में राजस्व एकत्रित करने की व्यवस्था में कोई रूकावट नहीं डाली जाए।
- नए कानूनों को बनाते व लागू करते समय भारतीय समाज व धार्मिक रीति रिवाजों का सम्मान किया जाए।
1773 के बाद भी कंपनी का शासन-प्रबन्धन ब्रिटिश सरकार के हाथों में नहीं आ सका, जिस कारण ब्रिटिश संसद द्वारा पिट्स इंडिया एक्ट 1784 पारित किया गया।