1947 अलग पंजाब देश की मांग
‘पंजाबी सूबा’ और अकाली दल का उदय
- साल 1950 में अकाली दल ने पंजाबी सूबा आंदोलन के नाम से आंदोलन चलाया। भारत सरकार ने साफतौर पर पंजाब को अलग करने से मना कर दिया। ये पहला मौका था जब पंजाब को भाषा के आधार पर अलग दिखाने की कोशिश हुई। अकाली दल का जन्म हुआ। कुछ ही वक्त में इस पार्टी ने बेशुमार लोकप्रियता हासिल कर ली। अलग पंजाब के लिए जबरदस्त प्रदर्शन शुरू हुए
पंजाब को अलग राज्य
- सिखों के लिए अलग राज्य की मांग को लेकर 19 साल तक आंदोलन चलता रहा. आखिरकार 1966 में इंदिरा गांधी ने इस मांग को मान लिया. इंदिरा गांधी की सरकार में पंजाब को तीन हिस्सों में बांटा गया. सिखों के लिए पंजाब, हिंदी बोलने वालों के लिए हरियाणा और तीसरा हिस्सा चंडीगढ़ था. उस समय चंडीगढ़ को पंजाब और हरियाणा दोनों की ही राजधानी बनाया गया. राजधानी को लेकर आज भी पंजाब और हरियाणा के बीच विवाद चल रहा है।
सिखों के लिए अलग ‘खालिस्तान’
- अलग सिख देश की आवाज लगातार उठती रही। आंदोलन भी होता रहा। 1970 के दशक में खालिस्तान को लेकर कई घटनाएं हुईं। 1971 में जगजीत सिंह चौहान ने अमेरिका जाकर वहां के अखबार में खालिस्तान राष्ट्र के तौर पर एक पेज का विज्ञापन प्रकाशित कराया और इस आंदोलन को मजबूत करने के लिए चंदा मांगा। बाद में 1980 में उसने खालिस्तान राष्ट्रीय परिषद बनाई और उसका मुखिया बन गया। लंदन में उसने खालिस्तान का देश का डाक टिकट भी जारी किया।
- इससे पहले 1978 में जगजीत सिंह चौहान ने अकालियों के साथ मिलकर आनंदपुर साहिब के नाम संकल्प पत्र जारी किया, जो अलग खालिस्तान देश को लेकर था।
भिंडरावाले का उदय
- 80 के दशक में खालिस्तान आंदोलन पूरे उभार पर था। उसे विदेशों में रहने वाले सिखों के जरिए वित्तीय और नैतिक समर्थन मिल रहा था। इसी दौरान पंजाब में जनरैल सिंह भिंडरावाले खालिस्तान के सबसे मजबूत नेता के रूप में उभरा। उसने स्वर्ण मंदिर के हरमंदिर साहिब को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया। उसने अपने साथियों के जरिए पूरे पंजाब में इस आंदोलन को खासा उग्र कर दिया। तब ये स्वायत्त खालिस्तान आंदोलन अकालियों के हाथ से निकल गया।
‘आपरेशन ब्लू स्टार’
- 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया गया. एक जून से ही सेना ने स्वर्ण मंदिर की घेराबंदी शुरू कर दी थी. पंजाब से आने-जाने वाली रेलगाड़ियों को रोक दिया। बस सेवाएं रोक दी गईं. फोन कनेक्शन काट दिए गए और विदेशी मीडिया को राज्य से बाहर जाने को कह दिया गया.3 जून 1984 को पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया. 4 जून की शाम से सेना ने गोलीबारी शुरू कर दी अगले दिन सेना की बख्तरबंद गाड़ियां और टैंक भी स्वर्ण मंदिर पर पहुंच गए. भीषण खून-खराबा हुआ. 6 जून को भिंडरावाले को मार दिया गया. की.
अमृतपाल सिंह
- अमृतपाल सिंह वारिस पंजाब दे के प्रमुख हैं. इस संस्था की स्थापना पंजाबी एक्टर दीप सिद्धू (Deep Sidhu) ने 2001 में किया था. अमृतपाल सिंह का जन्म पंजाब के अमृतसर के खेड़ा गांव में 1993 में हुआ था. एक्टर दीप सिद्धू की कार दुर्घटना में मौत हो गई, जिसके बाद अमृतपाल सिंह ही इस संगठन का सर्वेसर्वा बन गया. अमृतपाल सिंह अक्सर अलग-अलग मंचों से खुद को सिख समुदाय का रहनुमा बताता रहा
- अमृतपाल सिंह खालिस्तानी समर्थक जरनैल सिंह भिंडरावाले को अपना गुरु बताता है.
- वर्तमान मे इसे भगोड़ा घोसीत कर दिया गया है।
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